वर्मीकंपोस्ट बनाने की जानकारी

वर्मीकंपोस्ट, एक प्रकार का आर्गेनिक उर्वरक है जो केंचुआ के माध्यम से बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में वर्मीकंपोस्ट बनाने की जानकारी प्राप्त करे , केंचुआ खाद के रूप में गोबर और अन्य कार्बनिक पदार्थों को खाता है और उन्हें अपने अंदर जलाकर वर्मीकंपोस्ट बनाता है। यह उत्तम पोषण पदार्थों से भरपूर होता है और इसमें अधिक पोषक तत्व होते हैं जिससे फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। वर्मीकंपोस्ट को तैयार करने की प्रक्रिया अत्यंत सरल होती है।

इसमें केंचुआ अवशिष्टों को एक निश्चित प्रकार के बिन में रखा जाता है जिसमें वे अपने खाने को खोजते हैं और उन्हें खाकर पचाते हैं। इस प्रक्रिया में गोबर की खाद के मुकाबले अधिक तेजी से वर्मीकंपोस्ट तैयार होता है और इसमें अधिक पोषक तत्व होते हैं। वर्मीकंपोस्ट का उपयोग कृषि में जल्दी और सुगमता से होता है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होती है, फसलों की उत्पादकता बढ़ती है, और पर्यावरण को भी बचाया जाता है।

इसके साथ ही, वर्मीकंपोस्ट में गोबर की खाद के मुकाबले अधिक नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटेशियम होते हैं जो कि पौधों के स्वस्थ विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

वर्मीकंपोस्ट बनाने की विधि : 

वर्मीकंपोस्ट बनाने के लिए, सुनिश्चित करें कि जहां आप इसे बनाने का इरादा रख रहे हैं, वहां का क्षेत्र थोड़ा ऊंचा हो, लगभग 2 से 3 इंच ऊपरी होना चाहिए ताकि जल संकुचन रोका जा सके और स्थल से जल संचार को सुविधाजनक बनाया जा सके। वर्मीकंपोस्ट में अधिक नमी की वजह से इसका खराब होने का खतरा होता है, और यदि बहुत अधिक नमी हो, तो यह आसानी से बाहर निकल जाती है।

सबसे पहले गोबर को पानी दल कर ठंडा कर ले| ऐसा 5 से 6 दीन करे | इसके बाद एक प्लास्टिक शीट बिछाएं। शीट के ऊपर बचा हुआ हरा चारा या पत्तियां फैलाएं, लगभग 3 से 4 इंच मोटी, और इस पर पानी छिड़कें ताकि नमी बनी रहे। फिर, इसे गोबर की परत से ढ़कें, केंचुओ के लिए एक परत बनाएं जिसके ऊपर एक और परत गोबर की हो और केंचुए बेड के ऊपर इसे आत्मसात करें। बेड को सेट करने के बाद, पुनः पानी छिड़कें ताकि आवश्यक नमी बनी रहे। अंत में, बेड को 3 से 4 इंच मोटी धान की पराली या घास से ढ़क दें।

जब बेड तैयार हो जाए, पहले दो दिन बिना किसी पानी के सीधे सूरज के प्रकाश में रखें। इससे केंचुओ को बेड में बिना अतिरिक्त नमी के परेशान किए हुए आराम मिलता है। लगभग 1 किलो केंचुओ एक दिन में अपने वजन के बराबर कंपोस्ट तैयार करता है। इसका मतलब है कि वर्मीकंपोस्ट भी लगभग 1 किलो में तैयार हो जाएगा।

वर्मी कम्पोस्ट टी के क्या क्या फायदे हैं

केंचुए के प्रकार ?

केंचुओं के विभिन्न प्रकारों की जानकारी:
केंचुए मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के केंचुए गहरी सुरंगों में रहते हैं, जिनकी लंबाई औसतन 8 से 10 इंच होती है और वे लगभग 7 से 10 फीट गहराई में सुरंग बना रहते हैं। इन केंचुओं का खाना 90% मिट्टी या रेत से होता है और 10% कार्बनिक पदार्थों से होता है।

दूसरे प्रकार के केंचुए सतह पर रहते हैं और उनकी गहराई सामान्यतः 1.5 फीट तक होती है और वे लंबाई में 4 से 6 इंच के बीच होते हैं। इन केंचुओं का खाना 90% कार्बनिक पदार्थों से होता है और 10% मिट्टी या रेत से होता है। वर्मीकंपोस्ट बनाने के लिए इन प्रकार के केंचुओं का उपयोग किया जाता है। केंचुओं को आमतौर पर 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान तक जिंदा रहने में समर्थ होते हैं। अगर मौसम 25 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच है और नमी कंपोस्ट बेड की नमी 50-60% है, तो केंचुए अधिक क्रियाशील होते हैं।

अन्य प्रकारों के केंचुओं में कुछ चयनित प्रजातियाँ हैं जो वर्मीकंपोस्ट के लिए उपयोगी होती हैं। इनमें से दो उदाहरण हैं: आइसीनिया फोटिडा, जिसे रेड वर्म भी कहा जाता है, और यूडिलस यूजिनी। आइसीनिया फोटिडा का उत्पादन काफी अधिक है और इसका रख-रखाव भी आसान होता है, जबकि यूडिलस यूजिनी दक्षिण भारत में अधिक पाया जाता है और इसका उच्च तापमान के साथ-साथ कम तापमान में भी सहन करने की क्षमता होती है।

वर्मीकंपोस्ट बनाने की विधि

वर्मीकंपोस्ट बनाते समय सावधानियां रखें?

वर्मीकंपोस्ट बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें:

  1. छाया और सूरज की रोशनी: वर्मीकंपोस्ट बेड को हमेशा छाया में रखें, क्योंकि केंचुओं की आंखें नहीं होती हैं लेकिन उन्हें सूर्य की रोशनी के प्रति संवेदनशीलता होती है।
  2. ताजे गोबर का प्रयोग न करें: कंपोस्ट बनाते समय ताजे गोबर का प्रयोग न करें। गोबर को कम से कम 4 से 6 दिन पुराना होना चाहिए और उसकी गर्मी निकाली गई होनी चाहिए।
  3. सही मिश्रण: गोबर के साथ कार्बनिक पदार्थों को 10% से 15% तक ही मिश्रित करें। देर से नष्ट होने वाले पदार्थों का मिश्रण न करें ताकि कंपोस्ट तैयार होने में समय लगे।
  4. बेड का संरक्षण: कंपोस्ट बेड को हमेशा घास फूस या धान की पराली से ढक कर रखें।
  5. पानी का उपयोग: गर्मियों के मौसम में बेड को सुबह-शाम दो बार पानी दें और सर्दियों में नमी के हिसाब से दिन में एक बार पानी दें। बेड का तापमान अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक और कम से कम 0 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
  6. सुरक्षा: केंचुओं को मेंढक, चूहा, कुत्ता, बिल्ली, नेवला, गिलहरी, और गिरगिट आदि से बचाएं। इन जीवों का हमारे कंपोस्ट को नुकसान पहुंचा सकता है।
  7. बेड की ऊंचाई: वर्मीकंपोस्ट के बेड की ऊंचाई गर्मियों के मौसम में 1 फीट और सर्दियों में 1.5 से 2 फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  8. वायुसंचार: हर सप्ताह बेड को एक बार हाथ से पलटें ताकि वायुसंचार हो और गोबर में गर्मी न बढ़े।
  9. सामग्री: वर्मीकंपोस्ट बनाने के लिए प्लास्टिक की सीट, गोबर, कार्बनिक पदार्थ (पेड़-पौधे के पत्ते), पानी।

वर्मीकंपोस्ट के फायदे (Vermicompost):

  1. पूर्ति की कमी: वर्मीकंपोस्ट में पैराट्रापिक नामक पदार्थ की झिल्ली होती है, जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया कम होती है। इससे फसलों को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती और उनकी पूर्ति भी बेहतर होती है।
  2. फसलों की सुरक्षा: वर्मीकंपोस्ट फसलों के लिए एंटीबायोटिक का काम करती है, जिससे फसलों में कम बीमारियाँ होती हैं।
  3. कार्बन का बढ़ावा: इसका प्रयोग साधारण गोबर से कार्बन की मात्रा को 4 गुना तक कम करता है, लेकिन पैदावार बेहतर होती है।
  4. सूक्ष्म जीवों का वृद्धि: वर्मीकंपोस्ट के प्रयोग से मिट्टी में फायदेमंद सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है, जो पौधों के विकास को सहायक होते हैं।
  5. कार्बन लेवल की सुधार: इसके प्रयोग से मिट्टी का कार्बन लेवल बेहतर हो जाता है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होती है।
  6. प्राकृतिक खाद का प्रयोग: वर्मीकंपोस्ट का प्रयोग करने से खेती में उपयोग होने वाली प्राकृतिक खाद की मात्रा बढ़ती है, जिससे मिट्टी का पोषण समृद्ध होता है और फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।

वर्मीकंपोस्ट का नियमित उपयोग करने से खेती में खाद की जरूरत कम होती है, जिससे खेतीकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं और भूमि को भी सुरक्षित रख सकते हैं। इसके साथ ही, वर्मीकंपोस्ट का प्रयोग करने से कार्बन प्रदान किया जाता है, जो पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।

इस प्रकार, वर्मीकंपोस्ट खेती में एक प्रमुख और प्राकृतिक तरीका है जिससे फसलों की उत्पादकता बढ़ती है और पर्यावरण का संरक्षण भी होता है।

केंचुए कहां से प्राप्त करें ?

वर्मीकंपोस्ट बनाने का प्रक्रियात्मक अनुभव लेने की इच्छा हो तो, पहले आपको केंचुए अर्थात वर्मिकम्पोस्टिंग वर्म्स की जरूरत होती है। इन्हें प्राप्त करने के लिए, आप अपने निकटतम कृषि विभाग से संपर्क कर सकते हैं, जो किसानों को वर्मिकम्पोस्टिंग वर्म्स मुफ्त में प्रदान करता है। इसके अलावा, आप अपने आस-पास वर्मीकंपोस्ट बनाने वाले किसान से भी मिल सकते हैं और उनसे केंचुए खरीद सकते हैं। यहां दिल्ली में मुख्यतः ₹100 से ₹300 किलो के हिसाब से उपलब्ध होते हैं।

आज, भारत और पूरे विश्व में रसायनिक उर्वरकों के उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम हो रही है। इससे फसलों को पोषण मिलने में कठिनाई हो रही है और फसलों पर कुप्रभाव भी पड़ रहा है। जानते हैं कि रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग से फसलों की उत्पादकता बढ़ती है, लेकिन इसका प्रभाव अनाज पर भी होता है, जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, वर्मीकंपोस्ट का उपयोग करना एक प्राकृतिक और स्वास्थ्यप्रद विकल्प हो सकता है।

वर्मीकंपोस्ट का उपयोग करने से, फसलों को पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी मिलती है जो स्वस्थ और प्राकृतिक उत्पादन को बढ़ावा देती है। यह उत्पादन बीमारियों से लड़ने की क्षमता को भी बढ़ाता है, जिससे किसानों को केमिकल उपचारों की आवश्यकता कम होती है। वर्मीकंपोस्ट के प्रयोग से मिट्टी में फायदेमंद माइक्रोऑर्गेनिज्म्स की संख्या बढ़ जाती है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है और फसलों की प्रदर्शन क्षमता में सुधार होता है।

वर्मीकंपोस्ट का उपयोग करने से, पर्यावरण को भी लाभ होता है। इससे कृषि उत्पादन में रसायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। साथ ही, वर्मीकंपोस्ट का उपयोग करने से कृषि उत्पादन का कार्बन प्रदूषण भी कम होता है, जो पर्यावरण के लिए बेहद लाभकारी है। इसके अलावा, वर्मीकंपोस्ट बनाने की प्रक्रिया में कृषि अपशिष्ट का पुन: प्रयोग किया जाता है, जिससे प्राकृतिक श्रृंगार बढ़ता है और पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचती।

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